प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 12)
अगली सुबह!
पुलिस हेडक्वार्टर..!!
माहौल खुशनुमा होने के बावजूद भी हेडक्वार्टर में कोई भी खुश नजर नहीं आ रहा था, इन घटनाओं ने उनके मस्तिष्क पर बहुत ही बुरा प्रभाव डाला था। वहां पर कोयल के कूकने के मधुर स्वर गूंज रहे थे, कानों में मिश्री की डली सी मिठास घोल देने वाली यह वाणी भी आज सभी को उनके काम में बाधक महसूस हो रहा थी। सुबह की ठंडी ताजी हवाओं के बावजूद सभी पसीने से तर हुए जा रहे थे। आदित्य के चेहरे पर परेशानी के भाव थे, मगर वह अब तक संयम बनाये हुए था। तभी वहां मेघना का आना हुआ, वह सीधा आदित्य के केबिन की ओर चल गई। सभी कॉन्स्टेबल्स अपनी-अपनी यूनिट्स के साथ अपनी शिफ्ट पर चैक पोस्ट्स जाने के लिए निकल गए। हालांकि बच्चों वाली घटना के बाद अन्य कोई दुर्घटना न घटी थी, न ही कोई अन्य केस दर्ज हुआ था। यह कुछ राहत की बात थी मगर सभी अब भी पुराने केसेस में ही उलझे हुए थे और अब भी सावधानी बरतना बहुत ही आवश्यक था।
"जय हिंद!" आदित्य ने मेघना को सैल्यूट किया।
"जय हिंद आदित्य! बताओ तुम्हें क्या पता चला है?" मेघना, आदित्य के सामने वाली टेबल पर बैठते हुए बोली।
"ये कुछ ज्यादा ही इंटरेस्टिंग है मेघ! ये देखो!" कहते हुए आदित्य ने लैपटॉप पर कैसेट की वीडियो प्ले कर दिया। उसमें टोल पोस्ट से ठीक वैसा ही ट्रक गुजर रहा था जैसा कि उस दिन अरुण ने पकड़ा था।
"व्हाट? ये कैसे पॉसिबल है?" मेघना अपना फोन निकालकर एक इमेज देखती हुई बोली, वह वही ट्रक था जो उसने उस दिन देखा था।
"यही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा है, जब वह ट्रक वहां नष्ट हो गया था तो..?"
"मैं समझ रही हूँ! यह दुश्मन की ही एक चाल थी, वह जानता था कि अरुण सुबूत ढूंढने हर टोल नाके पर जाएगा और जब इसे देखेगा तो..!"
"उसने वही किया जो वह चाहता था!"
"ये कोई मामूली खिलाड़ी नहीं है आदि! ये कोई मंझा हुआ खिलाड़ी है, इस खेल में माहिर!"
"मगर इस वीडियो से हमें कोई और चीज नहीं मिला।" आदित्य निराश भाव से बोला।
"मिला न! ध्यान से देखो!" मेघना ने वीडियो पॉज कर ट्रक को ज़ूम किया। "अब ध्यान से देखो!"
"व्हाट? यानी अरुण शुरू से ही सही था!" आदित्य बुरी तरह चौंका। ट्रक के सामने वाले कांच पर सेम वहीं चिन्ह बना हुआ था जो अब तक कई जगहों पर मिल चुका था। एक बड़ा सर्कल, उसके बीच एक और सर्कल, उनके बीच एक स्टार और इन सबके बीच में फुंफकारता हुआ नाग! यह चिन्ह इतना धुंधला था कि बिना आँखे गड़ाए नजर ही न आता।
"मैं जब से तुम्हारे पास वो इमेज देखी मुझे लगा मैंने कहीं तो इसे देखा हुआ है, अब याद आया मैंने इसी ट्रक पर वह निशान देखा हुआ था।" मेघना आत्मविश्वास भरे स्वर में बोली।
"इसी ट्रक को?" आदित्य हैरानी से उसे देखने लगा, जैसे वह कोई आठवां अजूबा देख रहा हो। "मगर तुम तो इस ट्रक का पीछा कर रही थी, यह ट्रक चेंज कैसे हो सकता है? और उसे चेंज ही करना था तो तुम्हारी नजरों में क्यों आया भला?"
"हाँ! इसी ट्रक को, मैंने एक साथ ही इसपर लगातार दो गोलियां भी दागी थीं, जो इसकी बॉडी से टकराई और गड्ढा कर गयी, ये देखो!" मेघना ने उस स्थान पर ज़ूम करते हुए कहा जहां दो गड्ढे बने हुए थे जिन्हें देखने से स्पष्ट हो रहा था कि ये निशान गोलियों के टकराने से ही बने हैं।
"कोई उसी निशान को किसी और ट्रक पर लगाकर मसूरी की ओर क्यों भेजेगा?" मेघना ने आदित्य की आँखों में झाँकते हुए पूछा, आदित्य के पास इसका कोई जवाब न था, वह चुप रहा।
"जवाब सिंपल है, वह बहुत बड़ा गेम खेल रहा है। वह जो कोई भी है वह जान गया था कि अरुण उसकी गर्दन तक जल्दी पहुँच सकता है इसलिए उसने उसे रास्ते से हटा दिया।" मेघना ने ऐसा कहा जैसे उसने बहुत बड़ा केस सॉल्व कर लिया हो।
"मगर अरुण के आने से पहले जो सारी किडनैपिंग हुई उनका क्या?" आदित्य के मन में अब लाखों सवाल घुमड़ने लगें।
"शायद कोई पुलिस को बदनाम करना चाह रहा था या फिर सरकार को! यार एक बात समझ आती है फिर अगली कड़ी टूट जाती है।" मेघना के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आये।
"मैंने सारी फाइल्स दुबारा पढ़ी हैं, मगर तब भी कोई सुराग नहीं मिला, पुलिस को बदनाम करने वाली बात सच हो सकती है क्योंकि कोई भी बच्चा किसी करोड़पति का नहीं है और दूसरे सभी के सभी दिव्यांग बच्चे हैं। कोई तो दिखाना चाहता है कि हम अपने काम में कितने बुरी तरह से नाकाम होते हैं।" आदित्य के जबड़े भींच गए वह कठोर होता गया।
"मगर…!" मेघना ने कुछ कहना चाहा तभी उसका फ़ोन रिंग करने लगा।
"हेलो!" उसने कॉल रिसीव किया। उधर से कुछ कहा गया, जिसे सुनते ही मेघना की आँखों में खून उतरने लगा, गुस्से के कारण उसका मासूम चेहरा सुर्ख लाल हो गया।
"क्या हुआ मेघ!" आदित्य उसे ऐसे देखकर हैरान होता हुआ बोला।
"चलो..!" वह बिना कोई जवाब दिए तेजी से बाहर निकल गयी, उसके गुस्से को भांपकर आदित्य भी उसके पीछे भागा।
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अरुण अब तक सुबूतों के तलाश में भटक रहा था, अब तक उसे नीडल को चेक करने का मौका नहीं मिला था इसीलिए वह फोरेंसिक लैब में चुपके से घुसकर उसे चेक करने की कोशिश कर रहा था, कमरे में ब्लू कलर का नाईट बल्ब ऑन था, चारों तरफ कई प्रकार की मशीन्स और केमिकल्स रखे हुए थे, यहां टेबल पर बहुत से सामान बिखरे पड़े थे मगर अलमारियों को करीने से सजाकर रखा गया था। अरुण ने हाथों में लंबे दस्ताने पहने हुए थे, उसने नीडल को एक केमिकल में डूबा दिया, उसका एक अंश स्लाइड पर रखकर वह माइक्रोस्कोप द्वारा उसे गौर से देखने लगा, मगर उसे कुछ भी नजर न आया। उसने केमिकल चेंज किया और फिर उसने नीडल के द्रव्य को जिस केमिकल की सहायता से निकाला हुआ था उसका थोड़ा सा भाग मिलाया और फिर स्लाइड पर रखकर टेलिस्कोप से देखने लगा। यही प्रक्रिया वह लगातार कई बार करता रहा। इसके बाद उसने प्रक्रियाओं की रूपरेखा बदली और फिर भिन्न-भिन्न तरीके से चेक करता रहा। वह काफी सम्भलकर काम कर रहा था मगर उसके पास ज्यादा वक़्त नहीं था।
यह लैब हाइली सिक्योर्ड थी मगर अरुण यहां के सभी रास्तों को बारीकी से जानता था इसलिए सिक्युरिटी को धोखा देने में उसे ज्यादा प्रॉब्लम नहीं हुई! पर वह यहां अपने होने का कोई सुबूत नही देना चाहता था, शायद इसीलिए उसने उसकी ओर नजर रखे इकलौते कैमरे के सामने अपना फ़ोन रख दिया था। सुबह होने ही वाली थीं मगर नीडल के अंदरूनी भाग में जो भी द्रव्य था उसका कोई पता नही चल रहा था। अरुण ने एक के बाद एक कई टेस्ट किये मगर वह कोई प्रोफेशनल नहीं था। वह अब भी हार नहीं मान रहा था तभी दरवाजे के खुलने की आहट हुई, अरुण झुँझला उठा, उसने किसी तरह अपने दिमाग को शांत किया, उसने उस केमिकल को टेस्टट्यूब से निकलकर एक छोटी सी शीशी में रख लिया और चुपके से डक्ट में घुसकर वहां से निकल गया। जाने से पहले उसने कैमरे के सामने रखा अपना फ़ोन उठा लिया जिसमें उसी रूम की तस्वीर दिख रही थी, मगर उस तस्वीर में वहां कोई नज़र नहीं आ रहा था। फ़ोन की स्क्रीन को देखकर अरुण ने मुस्कुराने की कोशिश की मगर नाकामी की चिढ़ उसके सिर पर हावी हो गयी, वह वहां से जल्दी से बाहर निकलने लगा।
"यकीन नहीं होता! मुझे अब समझ आता है कि मुझे केमिकल्स से इतनी नफरत क्यों होती थी!" डक्ट में सरकता हुआ अरुण बुरी तरह भन्नाया हुआ था। "ये सारे एक जैसे दिखते हैं मगर सबका अलग अलग नाम, अलग अलग काम और कुछ तो काम तमाम भी कर देते हैं! मैंने हर सम्भव कोशिश किया मगर उन बच्चों के शरीर में कोई बिल्कुल अलग द्रव्य डाला गया था जो मेरे ख्याल से कम से कम चौबीस घण्टे बाद एक्सप्लोड होता है। मैं तो बस इतना ही समझ सका, मगर फिर भी मैं उसे ढूंढ लूंगा। एक बार मुझे वह शख्स मिल जाये जिसने याद सब किया, उसे मैं इसी केमिकल में डूबा-डुबाकर मारूंगा।" अरुण अब तक डक्ट के दूसरी ओर आ चुका था जो कि एक अंधेरे कमरे में खुलता था, वहां से निकलते ही वह उड़नछू हो गया।
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घण्टाघर!
देहरादून का एक व्यस्त इलाका, जहां चारों ओर कई तरह की शॉप हैं, घंटाघर भी अपना सुंदर इतिहास रखता है, इसका निर्माण ब्रिटिशकाल में हुआ था, तब यह समय बताने के काम आती थी। हालांकि पिछले कई वर्षों से यहां अब घण्टा नहीं बजता फिर भी यह दर्शनीय स्थल है, आजभी लोग इसके दर्शन के लिए आते ही रहते हैं।
आज यहां कुछ ज्यादा ही अफरातफरी मची हुई थी, भीड़ ने घण्टाघर को घेरे हुआ था, उनके चेहरों पर व्यग्रता और क्रोध दिखाई दे रहा था। कुछ कॉन्स्टेबल्स उन्हें घण्टाघर से दूर करने की लगातार नाकाम कोशिशें किया जा रहे थे। भीड़ अब उग्र रूप अपना चुकी थी, आसपास के दुकानों और वाहनों पर पत्थर बरसाया जा रहा था। 'पुलिस मुर्दाबाद' के नारे लगाए जा रहे थे। तभी वहां तेज रफ्तार से बदहवास भागती हुई पुलिस की गाड़ी रुकी, उसमें से मेघना और आदित्य निकले, सामने जो मंजर था उसे देख दोनों के भी होश फाख्ता हो गए।
उन सभी बच्चों को जो किडनैप किये गए थे, उन्हें बहुत बेरहमी से मारकर घण्टाघर की दीवारों पर लटका दिया गया था। वर्षो से देहरादून की एक प्रसिद्ध धरोहर पर मासूमों के खून के छींटे पड़े हुए थे। आदित्य और मेघना की आँखों में लहू उतर आया, बच्चों की बुरी तरह काटी-फाड़ी गयी लाशों को देखकर किसी पत्थरदिल का भी सिर चकरा जाता। पुलिस की गाड़ी देखते ही भीड़ का गुस्सा फट पड़ा। अगले कुछ ही पलों बाद वह गाड़ी कबाड़खाने में बिकने लायक भी न बची थी।
"पुलिस हमारी हिफाज़त कर सकने में नाकाम है, हमारे मासूम बच्चों की जान इनके लिए कोई मायने नहीं रखती। अब हम में से कोई इनके फालतू कानून को नहीं मानेगा।" भीड़ में कुछ लोग जोर जोर से चिल्ला रहे थे। "आज इन सभी बेरहमों को हमारे बच्चों की कीमत पहचाननी होगी, जब तक ये हमारी बातों को नहीं सुनेंगे, तब तक हम में से कोई नहीं रुकेगा।" यह सब सुनते ही पहले से व्यग्र भीड़, उग्र रूप धारण करने में देर नहीं की।
"नहीं! जरा ठहरिए मेरी बात सुनिए, पुलिस अब भी काबिल है।" मेघना अपना पूरा जोर लगाकर चीखीं। "कानून उस अपराधी को अवश्य सजा देगा, कृपया कर आप लोग संयम बरते हमारा सहयोग दें!" मेघना किसी भी तरह भीड़ को समझाने की कोशिश कर रही थी।
"सब बकवास है! किसी को तुम्हारें बच्चों से कोई मतलब नहीं हैं, अगर इन्हें परवाह होती तो इन मासूमों की लाशें यहां नही पड़ी होती। कानून और अपराधी सब एक दूसरे से मिले होते हैं, इन बेरहमों के इस चक्की के दोनों पाटों के बीच हम मासूम लोग पीसें जाते हैं। कोई किसी की बात नहीं सुनने वाला, वो करो जो तुम्हारा दिल कहता है।" वही शख्स फिर से चीखा, भीड़ में से एक शख्स ने मेघना को धक्का दिया वह नीचे जा गिरी, लोग बिना कुछ देखे उसके उपर से गुजरने लगें, यह देखते ही आदित्य गुस्से से पागल हो गया, उसने एक साथ आसमां में तीन फायर झोंक दिया, लोग जहां के तहा ही जड़वत खड़े हो गए, वह तेजी से भागकर मेघना को उठाया, वह बुरी तरह जख्मी हो चुकी थी, उसके होंठ फट चुके थे जिनसे बुरी तरह खून रिस रहा था।
"अरे खड़े क्यों हो गए?" भीड़ से दूसरा शख्स चीखा। "देखा नहीं तुम लोगों ने, ये लोग सच्चाई के लिए इनके खिलाफ आवाज उठाने के लिए हमपर गोलियां भी दाग सकते हैं, मगर हम इतने कमज़ोर नहीं हैं। इन मासूमों के खून से भले इनके घर का चूल्हा जलता हो मगर हमारा दिल जलता है, अब इसे सीने में गोलियां भी उतर जाएं तो कोई गम नहीं!" वह शख्स आवेशित स्वर में चिल्लाते हुए बोला। यह सुनते ही भीड़ पुनः बेकाबू होने लगी।
"नहीं प्लीज! आप लोग हमारी बात सुनिए, हम अपनी पूरी कोशिश कर रहें हैं। कानून अपने हाथों में मत लीजिये।" आदित्य ने चीखते हुए कहा। सभी कॉन्स्टेबल्स अब भी भीड़ को उन मासूमों के क्षत-विक्षत शरीर से दूर करने की नाकाम कोशिशों में जुटे हुए थे।
"तुम्हारी इन्हीं कोशिशों पर भरोसा करके ही हमने अपना बच्चा खोया है, आज अगर कानून अपने हाथ नहीं लेंगे तो कानून कभी नहीं जाग पायेगा।" आदित्य को धक्का देते हुए एक युवती ने आक्रोशित स्वर में कहा।
"हमें समय दीजिये प्लीज! हमारा कहा सुनिए!" आदित्य किसी तरह उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था।
"और समय दिया तो फिर देहरादून में कोई बचेगा ही नहीं, सब इन मासूमों की तरह कटे-फ़टे यहीं किसी सड़क के पास कूड़े के ढेर में पड़े मिलेंगे! हम अपने हक़ के लिए, हम रक्षा के लिए लड़ेंगे, लड़ते रहेंगे अपनी आखिरी सांस तक...!" उसके पास से गुजरते हुए एक युवक ने चिल्लाते हुए कहा। तभी किसी ने आदित्य को धक्का दिया वह धम्म से नीचे गिर गया।
"आप लोगों को बहकाया जा रहा है.. ऐसा करके आप कानून के दुश्मनों की मदद कर रहे हैं, रुक जाइये प्लीज!" आदित्य लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे थे।
"ये अब पूरी तरह उन्मादी हो चुके हैं आदि! ये अब किसी की नहीं सुनेंगे।" इससे पहले आदित्य कुचला जाता, मेघना ने उसे खींचकर एक ओर किया।
"अगर ये भीड़ नहीं रुकी तो हमारे सारे प्लान्स हमारी योजनाएं धरी की धरी रह जायेगा मेघ! ये जो भी खिलाड़ी है वह इस खेल में हमसे चार कदम आगे है।" आदित्य खड़ा होते हुए बोला।
"तुम्हारें वो मंत्री? हां रावत! क्या वे इन्हें समझा सकते हैं?" मेघना ने आदित्य से पूछा।
"शायद! इस बार भीड़ किसी की भी नहीं सुनने वाली!" आदित्य बहुत अधिक परेशान हो गया था।
"कॉल करो!"
मेघना के कहने से पहले ही आदित्य नरेश रावत को कॉल कर चुका था, रिंग जा रही थी मगर अटेंड नहीं किया गया, उसने दुबारा ट्राय किया मगर दुबारा भी कॉल नहीं उठाया गया।
"क्या हुआ!" मेघना ने पूछा।
"कॉल नही उठाया जा रहा है।" आदित्य परेशान स्वर में बोला।
"घर का नम्बर होगा न! उसपर ट्राय करो!" मेघना ने सुझाव देते हुए कहा। भीड़ अब और बढ़ती जा रही थी वे लोग घण्टाघर को पूरी तरह घेर चुके थे। कॉन्स्टेबल्स भीड़ के नीचे दबते ही जा रहे थे। उनमें से कुछ किसी तरह बाहर निकलने में कामयाब हुए थे तो कुछ घण्टाघर पर ही चढ़ गए थे, बाकी जो भी भीड़ के हाथ आया वह बहुत बुरी तरह पीटा जा रहा था।
"ओफ्फ! इसपर भी कॉल नहीं लग रहा है। अब हमें ही कुछ करना होगा मेघ!" आदित्य ने झुंझलाहट भरे स्वर में कहा।
"पर हम करें क्या? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, अब तक तो फोर्स आ जानी चाहिए थी मगर….!" मेघना ने बोझिल स्वर में कहा।
"हम लोग कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते दोस्तों!" वातावरण में एक प्रभावशाली आवाज गूँजने लगी जिसने भीड़ को दबा दिया। आदित्य पीछे की ओर से एक ट्रक आता हुआ दिखाई दिया जिसकी छत पर नरेश रावत माइक थामें खड़े थे।
"कानून के अपने कुछ दायरे हैं, अपने कायदे हैं! माना कि आज ये नाकाम हो रहें हैं मगर इसका मतलब ये नहीं कि ये निक्कमे हो गए हैं, ये अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं! मेरे प्यारे दोस्तों मेरा आपसे यही आग्रह है कि शांत होकर अपने अपने घर वापिस लौट जाएं, जब तक मेरे जिस्म में लहू का एक कतरा भी शेष है आपको कोई क्षति नहीं पहुंच सकती ये मेरा वादा है।" नरेश के प्रभावशाली वक्तव्य ने लोगों पर जादुई प्रभाव डाला। भीड़ का जोश धीरे-धीरे थमने लगा।
"नहीं! इसकी बात भी कोई मत सुनो, ये बस नेता है! नेता हमारा खून चूसने वाले मच्छर होते हैं, जैसे प्यार बुझने पर मच्छर आपका खून पीना छोड़ देते हैं उसी तरह ये नेता वोट लेने के बाद हमें छोड़ देते हैं…! सड़क पर पड़े इन बेजान मासूमों की तरह..! ये सारे इनके झूठे दिलासे हैं, वादे टूटेंगे और हम रोते कलपते रह जाएंगे, मगर तब हमारी बात सुनने वाला कोई नहीं होगा। ऐसा आज पहली बार नहीं हो रहा है, तुम लोग इसकी मीठी बातों में आकर अपना कर्तव्य नहीं भूल सकते!" एक युवक आक्रोश से चीखते हुए बोला।
"तुम्हारा कर्तव्य क्या है नौजवान? इसदेश के दुश्मन जो चाहते हैं उसमें उसका भागीदार बनकर देश का दुश्मन बन जाना या फिर अपने देश के प्रति कर्तव्यों को न भूलते हुए उस अज्ञात दुश्मन के हर वार का मुंह तोड़ देना। आप सब स्वयं सोचिए जिसने भी ऐसा क्या वह क्या यह नही चाह रहा होगा कि आप सब ये करें..! देखिये आप लोगो ने क्या किया है, कानून को अपने हाथ में ले लिया है। उसने इसीलिए ही ऐसा किया होगा और आपसब ने ऐसा करके उसका साथ दिया! हम मानते हैं कि पुलिस इस बार भी नाकाम हो गयी है, सत्ता में प्रतिष्ठित सरकार इन सभी घटनाओं से दूरी बनाए हुए है मगर फिर भी हमें विश्वास है कि आगे से ऐसी घटना कभी नहीं घटेगी। हम इन मासूमो का बड़े सम्मान से अंतिम संस्कार करेंगे! कृपया पुलिस को अपना काम करने दें।" नरेश के वक्तव्य ने भीड़ पर मोहिनी प्रभाव डाला, सभी शांत होकर उनकी बातों को समझने की कोशिश कर रहे थे, उकसाने वाले सभी लोग भी शांत हो चुके थे। नरेश ने एम्बुलेंस को कॉल किया, सभी घायल लोगों को सिटी हॉस्पिटल में भेजा गया, कई सारे कॉन्स्टेबल्स बुरी तरह ज़ख्मी हुए थे, मुरली-धरन भी बच्चों के शरीर के पास ज़ख्मी हालत में पड़े हुए थे। थोड़ी ही देर में सभी ज़ख्मी और उन बच्चों को हॉस्पिटल भेजा जा चुका था, आदित्य ने मेघना को बैंडेज दिया, नरेश उतरते ही आदित्य के पास आया उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी! जबकि आदित्य अब तक यह नहीं समझ पा रहा कि यह सब कैसे हुआ, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि पागल भीड़ शांत हो चुकी थी।
"आप! बहुत धन्यवाद आपका।" आदित्य ने नरेश को सैल्यूट करते हुए कहा। "मैंने आपको कॉल करने की बहुत कोशिश की मगर एक भी बार कॉल रिसीव नहीं हुआ।
"ओह सॉरी!" नरेश ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा। "दरअसल मैंने टीवी पर यह घटना देखा, पर मैंने सोचा नहीं था कि भीड़ इतनी बढ़ जाएगी। मैं बस पहले से ही भीड़ तक को मेरी आवाज सुनाई दे जाए ऐसे उपकरण लेने गया था।"
"प्लीज सॉरी कहकर शर्मिंदा मत कीजिये। आपकी समझदारी ने वक्त पर भीड़ को शांत कर दिया वरना कल तक पूरा का पूरा देहरादून शमशान नजर आने लगता। भड़की हुई भीड़ और लाल कपड़े को देखकर भड़के हुए सांड में कोई अंतर नही हैं।" आदित्य ने नरेश का धन्यवाद अदा करते हुए कहा।
"बेकाबू सांड हमेशा तभी काबू में आता है जब उसके सामने नरमी से पेश आया जाए, ये लोग उग्र थे मगर देशभक्ति की मशाल अब भी इनके अंदर जल रही है, बस जरूरत इस बात की है कि वे इसे देखें और समझें!" नरेश ने मुस्कुराते हुए कहा।
"हम्म!"
"इस तरह बच्चों पर दुबारा अटैक मुझे विचलित कर रहा है आदित्य! हमें और अधिक अलर्ट रहना होगा।" कहते हुए नरेश ट्रक की ओर बढ़ गया, सामने की ओर से एक काली कार आयी, नरेश के पास रुकी। नरेश आदित्य की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखता हुआ कार में सवार हो गया।
"अगर नरेश नहीं आते तो पता नहीं क्या हो जाता!" मेघना, आदित्य के पास जाते हुए बोली, उसकी आँखों में नरेश के लिए सम्मान था।
"हाँ! वे बहुत बड़े देशप्रेमी हैं, जनता को ही अपना सबकुछ मानते हैं!" आदित्य की नजरों में भी नरेश के लिए वही सम्मान था।
चारों तरफ़ रक्त के छींटे बिखरे हुए थे, कई दुकानें टूटी-हुई हालत में थी, छतें टूटकर बाहर की ओर लटक रही थीं, अनगिनत गाड़िया भीड़ के पैरों तले कुचल दी गयी, पुलिस किसी कार्यवाही को अंजाम तक न दे सकी थी। आदित्य और मेघना दोनों ही भीड़ के न रुकने पर होने वाले मंजर के दृश्य की कल्पना कर सिहर गए।
"यह सब क्या हो रहा है आदित्य! उस दिन वे बच्चे, आज सारे के सारे किडनैप किये गए बच्चे! आखिर इन मासूमों की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है?" मेघना घण्टाघर पर बिखरे खून को देखकर सहम गयी थी।
"पता नहीं मेघ! चलो अब तुम्हें भी हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा।" कहता हुआ आदित्य, उसका हाथ पकड़कर पास खड़ी एम्बुलेंस में प्रविष्ट हुआ।
क्रमशः….
Seema Priyadarshini sahay
11-Nov-2021 06:21 PM
बहुत बढ़िया
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Niraj Pandey
03-Nov-2021 11:02 AM
वाह जबरदस्त
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